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मृत्यु / दीपक मशाल
Kavita Kosh से
मृत्यु एक उत्सव
'उत्सव'
जो दोनों अँगूठों को
दोनों कनपटियों पर रख
अँगुलियों को तेजी से नचाते हुए
जीवन को चिढ़ाते जीभ
जीवन भर के
सुनार की हथौड़ियों जैसे सहस्रों अमर दुखों पर
लुहार की एक चोट बन
अंतिम उपहास उड़ाता...
कुछ यूँ कि आत्मा भी
हँसकर त्याग देती देह
उत्सव में डूबकर
दर्द की जड़ को दुत्कार देती
किंतु
मृत्यु नहीं अंत जीवन का
बल्कि यह पहला कदम
अमरता की ओर
उनके लिए
जो अपने जीवन भर बाँटते, बिखेरते
खुशी, सुख और आनंद