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मेघ गरजा रात भर है / अमरेन्द्र

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मेघ गरजा रात भर है,
प्यार सचमुच में अमर है ।

कौन कहता है विरह में
बस धरा दो टूक होती,
क्या कहूँ कि नभ-हृदय में
पीर कितनी, हूक होती;
मौन रह पाया न जब था
सब जगह दे हाँक आया,
हाथ में दीपक जलाए
गिरि-वनों तक झाँक आया;
जिस तरह छलके हैं आँसू
शैल नदिया है; लहर है।

भोर होते सो गया थक
सब तड़प आखिर छुपा कर,
पीर मन की, आग तन की
लोक-लज्जा से बुझा कर;
सो गया कोने में नभ के
भाव कोई; ज्यों अकम्पित,
झील पर, ज्यों वेदना की
एक छाया घनी बिम्बित;
पर हवाओं में सिहर है,
प्यार सचमुच में अमर है ।