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मेरा मन / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
फफोले उफने
मेरे तन
भीतर भरा मवाद
ऎसी गर्मी तन बसी
जन रहा न मेरे पास।
उमस
धूमस कर रही
देती तपन असहाय
तन मेरा जल मरा
मन रहा तेरे पास।
खंख बना मन
डोल रहा आकाश
बांधे
पिया मिलन की आस।