मेरी तरफ़ भी देखो / संजय चतुर्वेद
मरने के बाद
मेरी अस्थियाँ गंगा में विसर्जित कर देना
और राख थोड़ी बिखरा देना
हवाई जहाज़ से हिमालय की चोटियों पर
और थोड़ी कन्याकुमारी के महासंगम में
और किसी को हक़ नहीं देश से इतना प्यार करने का
थोड़ी-सी भस्म एक हण्डिया में भर
गाड़ देना मेरी समाधि में
लोग देखने आएँ मेरे अजायबघर
सौ दो सौ एकड़ ज़मीन ज़रूर घेर लेना
सबसे शानदार जगहों पर
और मेरे जन्म दिन पर छातियाँ भी पीटना
एक और बात जो दिलचस्प हो सकती है
बच्चों से मुझे कभी कोई लगाव नहीं रहा
लेकिन इसी बहाने अगर उनकी छातियों पर मूँग दली जाए
तो चलेगा
हालाँकि मेरे कोई पुत्री नहीं थी
वर्ना मैं उसके नाम
चार पाँच किलो चिट्ठियाँ भी छोड़ ही जाता
मैं दिन में एक सौ बयालीस घण्टे काम करता था
और उनसे नफ़रत करता रहूँगा
जो इससे कम कर पाते हैं
जीवन में सभी विषयों पर पढ़ा सोचा और लिखा
और कुछ छूट न जाए इसलिए
तैंतालीस में जब मुझे फ़्लू हुआ
मैंने दूरअन्देशी दिखाते हुए
एड्स वैक्सीन पर एक लेख लिखा
अब मिल नहीं रहा
उसे दोबारा लिखकर छपवा देना
और अगर फिर भी ख़ून बचा हो
आने वाली नस्ल में
तो मैं अपनी प्रिय मेज़ की दराज़ में
एक पाण्डुलिपि छोड़े जा रहा हूँ ।
1991