भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी दुआ है /जावेद अख़्तर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मेरी दुआ है

खला के गहरे समन्दरों में
अगर कहीं कोई है जजीरा
जहाँ कोई सांस ले रहा है
जहाँ कोई दिल धड़क रहा है
जहाँ जहानत ने इल्म का जाम पी लिया है
जहाँ के वासी खला के गहरे समन्दरों में
उतारने को है अपने बेड़े
तलाश करने कोई जजीरा
जहाँ कोई सांस ले रहा है
जहाँ कोई दिल धडक रहा है



मेरी दुआ है
की उस जजीरे में रहने वालो के जिस्म का रंग
इस जजीरे के रहनेवालो के जिस्म के जितने रंग है
उनसे मुख्तलिफ हो
बदन की हैअत भी मुख्तलिफ हो
और शक्ल-ओ-सूरत भी मुख्तलीफ हो



मेरी दुआ है
अगर है उनका भी कोई मजहब
तो इस जजीरे के मजहबों से वो भी मुख्तलिफ हो



मेरी दुआ है
की इस जजीरे की सब जबानो से मुख्तलिफ हो
जबान उनकी


मेरी दुआ है
खला के गहरे समन्दरों से गुजर के
इक दिन
उस अजनबी नस्ल के जहाजी
खलाई बेड़े में
इस जजीरे तक आयें
हम उनके मेजबाँ हों
हम उनको हैरत से देखते हों
वो पास आकर
हमें इशारो से ये बताएं
की उनसे हम इतने मुख्तलिफ है
की उनको लगता है
इस जजीरे के रहने वाले
सब एक से है


मेरी दुआ है
की इस जजीरे के रहने वाले
उस अजनबी नस्ल के कहे का यक़ीन कर ले