मेरी बेटी का पाठ / प्रमोद कुमार
एक गाय को ठोकर मारती टाटा सूमो को
याद कर लेती है मेरी बेटी
उसे जोड़ देती है पाठ्यक्रम में
उठाती है उसके विरोध में सभी के हाथ
वह गाय के पक्ष में लड़ती है बिना हिंदू बने ।
वह जानती है गाँधी के हत्यारों के बारे में
किसी भी महंत का पाँव छूने से
मुझे रोक देती है मेरे हाथों से लिपटकर ।
वह कारख़ाने की कॉंलोनी में खेलती है दिल खोलकर
अपनी सहेलियों के हाथों को एक साथ जोड़कर
बनाती है
इस पृथ्वी पर एक मदिर का सुंदर और बड़ा नक्शा
वह दिखाती है नये कारख़ानों का धर्म ।
हमारे शहर में जब-तब सारे लोग
बता दिये जाते हैं खालिस हिंदू या मुसलमान
वे दहशत से बच्चों को घेर देते है पराए घर में
मेरी बेटी रह जाती है उनसे बाहर
वह तोड़ती है धर्म का एक कारख़ाना ।
उसकी क़िताबों में नहीं छपा होता है बहुत कुछ
अपनी परिक्षाओं में
वह जोड़ती रहती है बहुत-से पन्ने
मेरी बेटी को अनुत्तीर्ण करने के लिए
सरकार बदल रही है पाठ ।