मेरे और तुम्हारे बीच / दिनेश जुगरान
जब मैं मिलता हूँ तुमसे
कोई बात नहीं करता
मेरी बातों और
तुम्हारे बीच
इतनी दूरी हो गई है
मैं तुम्हें कोई भी
आप बीती नहीं सुना सकता
कोई एक घास का तिनका भी
नहीं बचा है
मेरे अन्दर जिसे
शब्दों के बदले मैं दे सकूँ
ये समय वैसे भी
लंबी-लंबी बातें
करने का
नहीं रह गया है
सबकी कलाइयों में घड़ियाँ
अलग-अलग समय दिखा रही हैं
तुम वैसे
कुछ सुनने को तैयार भी नहीं हो
तुम्हें एहसास है
मेरे पास कहने को कुछ नया नहीं है
तुम्हारी चुप्पी से मुझे कोई भय नहीं है
डर मुझे सिर्फ
तुम्हारी आँखों से है
जो लगातार पैनी होती जा रही है
तुम करो कोई बात
या मैं दूँ कोई जवाब
कोई फर्क नहीं पड़ता है
समय की खामोशी को
आओ आपस में बाँट लेते हैं
देखो, बाहर रात का अँधेरा है
पूरी दोपहर तुम काफी बोल चुके हो
अँधेरा महसूस करो
सुबह जागते समय
फिर चिल्ला लेना