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मेरे कवि — 3 / तेजी ग्रोवर
Kavita Kosh से
मैंने देखा शव शब्द से वे खौफ़ नहीं खाते थे। ख़ून शब्द
से उनके पन्नों में कई वाक्य भीगे हुए थे। अन्तिम पंक्तियों
के ऊपर उनके गिद्ध घूमते थे आकाश में।
मरकर भी उनकी प्रेमिकाएँ आईना देखने आती थीं। उनके
अक़्सों पर वे धूल में धूल शब्द ही लिख पाते थे।
बच्चों को उन्हीं उँगलियों से खाना खिलाते थे।