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मेरे गीत सँभाले रखना / राहुल शिवाय
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					मेरे गीत सँभाले रखना 
गीत न मेरे काम आ सके, 
ऐसा अवध रहा जीवन भर 
जहाँ न वापस राम आ सके
दर्द, विरह, आँसू, तन्हाई 
किसे नहीं है 
चाहा मैंने
मेरे घावों से तो पूछो 
किसको नहीं 
सराहा मैंने
अनगिन पत्र लिखे जीवनभर
लौट नहीं पैगाम आ सके
मेरे गीत अहिल्या बनकर 
खोज रहे कबसे
पग-चन्दन 
मेरे गीत किसी शबरी-सा
चाह रहे 
करना अभिनंदन 
बहुत तपे हैं ये जीवन भर
ज़रा देखना शाम आ सके
गीत भटकता जीवन जिसने 
पाषाणों में 
प्रान भरा है
जिसकी धाराओं पर अबतक 
चोटों से 
हर घाव हरा है 
पर इनका तो ध्येय यही है-
कभी नहीं विश्राम आ सके
	
	