मेरे विद्रोही शब्द / अरुण श्री
नहीं सामंत !
सम्मोहित प्रजा का आँकड़ा बढाती संख्या नहीं मैं।
मेरा वैचारिक खुरदरापन -
एक प्रखर विलोम है तुम्हारी जादुई भाषा का।
पट्टे की कीमत पर पकवान के सपने बेचते हो तुम।
मेरी जीभ का चिकना होना जरुरी है तुम्हारे लिए।
नहीं सामंत !
रोटी का विकल्प नहीं हो सकतीं चंद्रयान योजनाएं।
प्रस्तावित अच्छे दिनों की कीमत मेरी जीभ नहीं है।
नहीं सामंत !
तुम्हारे मुकुट का एक रत्न होना स्वीकार नहीं मुझे।
शब्दों के विलुप्त होने की प्रक्रिया समझाते तुम -
विद्रोही कवियों से एक अदद प्रशस्तिगान चाहते हो।
लेकिन मेरे लिए सापेक्ष तुम्हारा झंडा थामने के -
कंगूरे से कूद आत्महत्या कर लेना बेहतर विकल्प है।
नहीं सामंत !
अपनी क्रन्तिकारी कविताएँ मैं तुम्हे नहीं सौंपूंगा।
मेरे विद्रोही शब्द तुम्हारी भाषा का उपसर्ग नहीं बनेंगे।