भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे वृन्त पर / भवानीप्रसाद मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे वृन्त पर
एक फूल खिल रहा है
उजाले की तरफ़ मुंह किये हुए I

और उकस रहा है
एक कांटा भी
उसी की तरह
पीकर मेरा रस
मुंह उसका
अँधेरे की तरफ़ है I

फूल झर जाएगा
मुंह किए -किए
उजाले की तरफ़
काँटा
वृन्त के सूखने पर भी
वृन्त पर बना रहेगा