मेरे साँची के स्तूप / अनामिका अनु
मेरे साँची के स्तूप,
तुम तोरणों से घिरे हो। मैं पर्यटक बनकर तुम्हारे प्रांगण में आ जाऊँ ,संभव ही नहीं। तुम अब भी सलीके का बाज़ार लगाए बैठे हो ,तुम विप्लव के गीत क्यों नहीं गाते?तुमने स्वेतलाना का ज़ुबानी इतिहास पढ़ा नहीं अब तक ?
तुम बुद्ध का उपदेश लेकर आते हो मैं बुद्धि से तोड़ती हूँ तुम्हारे दुर्ग और तोरण को।तुम हर तस्वीर में ख़ुदा लगते हो मेरी कोई ऐसी तस्वीर ही नहीं जिसमें मैं मनुष्य लग सकूँ।
तुम लंबी तान सा मत आना , तुम श्रुति नाद-सा आना। तुम भद्रता की थाप लाना, मैं प्रेम की मुद्राएँ।तुम अकवन फूल लाना ,मैं भैरव लाऊँगी।तुम जावाकुसुम लाना
मैं आ जाऊँगी।
मैं वैभव के गुरूत्व बोध से संतप्त एक अकविता ,तुम छंदबोध-सा आना।
न मैं अग्निमित्र,न सतकर्णी का कोई कलाकार। मैं युद्ध हूँ, स्थापित को ध्वस्त करती आयी हूँ।
तुम मिलना मुझसे जीर्णता और विघटन के बीच प्रतीक्षा उत्सुक दालान की बिछी घास पर ।
जनरल टेलर बौद्ध वृक्ष के नीचे ' द क्रीमसन बैनर' गा रहे हैं।बताओ न क्या उन्होंने कभी किसी आयरिश लड़की से प्रेम किया था।प्रेम में पड़े होते हैं विद्रोह के बीज ,कब खनक उठे...बुद्ध भी नहीं जानते?
जापानी ताँबे की घंटियों तक मैं पहुँच नहीं पाती,साँची तुम थोड़ा झुक जाओ न।किसी से प्यार करना आसान नहीं होता मगर तुम्हारी आँखें इतना बोलती हैं कि मैं फ़ारिग ही नहीं हो पाती।
चलो तुम्हारी एक और तस्वीर ढूँढ़ती हूँ …
नीम के पेड़ पर हार्नवील हैं।
जो तुम्हारे स्वप्न न हो ,तो जिराफ़ बनने से परहेज़ किसे है…
तुम्हारी
अना