भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं / नीलेश माथुर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


एक प्रश्न
अक्सर मैं करता हूँ खुद से
कि मैं कौन हूँ?
अपने अस्तित्व की तलाश में
खुद अपने आप से अपरिचित
हैरान होता हूँ मैं
खुद के मैं पर,
जीने के बहाने ढूंढ़ते हुए भी
मेरा मैं
अस्तित्वहीन सा खड़ा है
सिर उठा कर,
और मैं
मेरे मैं की परतें उधेड़ता हुआ
उलझता जाता हूँ
अपने ही प्रश्न के जाल में!