भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं एक अमलतास / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
उदासी की
गहरी बरसात में भीगता
आता हूँ तुम्हारे पास
निपट अकेला
बेहद तन्हा
लेकिन
तुम्हारे पास से लौटता हूँ जब
तो अकेला नहीं होता मैं
होता हूँ
जैसे वृक्ष कोई अमलतास का
फूलों से लदा
महकता
पवन में हिलोरे लेता
लौटता हूँ जब
तुम्हारे पास से
तो तन्हा नहीं होता
तुम्हारे
हृदय का संगीत
तुम्हारी आवाज़ का भीगापन
तुम्हारी सांसों की खुशबू
तुम्हारा काँपता स्पर्श
कितना कुछ
लौटता है साथ मेरे
लौटता हूँ
तुम्हारे पास से जब
तो अकेला नहीं होता मैं
तन्हा नहीं होता मैं
फूलों से लदा
लहलहाता
एक अमलतास होता हूँ।