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मैं एक पेड़ हूं / अशोक तिवारी

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मैं एक पेड़ हूं

मैं एक पेड़ हूं....
सालों साल से खड़ा हूं यहां
ज़मीन में गहरी धँसी हैं मेरी जड़ें

विस्थापित होने के डर से अभिशप्त
मैं एक पेड़ हूं....

वो आए
अपने मीठे, मगर क्रूर इरादों के साथ
वो आए
अपनी पूरी ताक़त और
संवैधानिक धाराओं की कमज़ोरियों के साथ
पूरे लाव-लश्कर के साथ
कमेटी की गाड़ियों
और दस्ते के साथ
हथियारों को लेकर हाथ
मुझ बेजान और असहाय के ऊपर हमला करने

अपनी इंसानियत का ओढ़े हुए खोल
उन्होंने किया भरपूर हमला
मेरी ख़ुशहाली पर
मेरी फलती-फूलती शाखों को
करते रहे कुल्हाड़ी के हवाले
छीजते रहे मेरा बदन
मेरी हँसी की खनखनाहट
जो कर देती थी उनके सीनों को चाक
मेरे लहलहाते सपने उनकी आंखों में
दहशत का तूफ़ान किए खड़े थे,
कर रहे थे
उनके सपनों को चकनाचूर
और बन रहे थे उनकी परेशानी का सबब

मैं एक पेड़ हूं....
और देखता रहा अपने आपको कटते
पीड़ा को दबाते हुए
भुजाओं को अपने से अलग होते
महसूस करता रहा
और तमाशबीनों की तरह
जो सोच रहे थे
‘क्या फ़र्क़ पड़ता है’
फ़र्क़ पड़ना संवेदना से जुड़ा है
क्या वे सचमुच नहीं जानते कि
मेरी सांसों का हिसाब इंसान से बहुत फ़र्क़ नहीं है
और देखते रहे दूर से ही
मेरे उजड़ते सपनों का मंजर
मेरे बदन पर चलने वाली
हर कुल्हाड़ी पर
मनाते रहे अपने मन में ख़ैर
होते रहे आल्हादित

मैं एक पेड़ हूं
नाम कुकरेजा
खुराक़ मेरी बहुत कम
मगर बढ़ता है मेरा क़द
किसी और पेड़ के दुगने से भी अधिक
मेरा ये गुण
बन गया शायद मेरा अवगुण
और हो गया
क्रूर आक्रांताओं(इंसानों) का मैं शिकार

मगर मैं बाबजूद इस सबके
कहूंगा यही कि
ठूंठ ही सही....
मैं एक पेड़ हूं
एक भरपूर पेड़...
पूरी जीवटता के साथ
मुझे इन आतताइयों से नहीं डरना है
पेड़ होने के नाते
वही करूंगा मैं, जो मुझे करना है....
मैं फिर बढूंगा
और दूंगा उन्हें फिर-फिर चुनौती!
..........................
(उस पेड़ के लिए जो मेरे बेटे प्रयास की उम्र का था और जिसे वन विभाग के छंटाई के आदेश के चलते पूरा छील दिया गया और ठूंठ बनाकर छोड़ दिया.)
13/04/2011