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मैं और तुम / विवेक निराला
Kavita Kosh से
मैं जो एक
टूटा हुआ तारा
मैं जो एक
बुझा हुआ दीप।
तुम्हारे सीने पर
रखा एक भारी पत्थर
तुम्हारी आत्मा के सलिल में
जमी हुयी काई।
मैं जो तुम्हारा
खण्डित वैभव
तुम्हारा भग्न ऐश्वर्य।
तुम जो मुझसे निस्संग
मेरी आखिरी हार हो
तुम जो
मेरा नष्ट हो चुका संसार हो।