मैं खुश हूँ / राजा खुगशाल
खुश हूँ कि अब मैं
वहाँ जा सकता हूँ
बिना खाए-पिए जहाँ
सैकड़ों वर्षों तक रहा जा सकता है
जहां से गेंद की तरह दिखेगी पृथ्वीह
और पृथ्वीे के इर्द-गिर्द
गुड़ की डली पर चींटियों की तरह
रेंकते नजर आएँगे असंख्यी तारे
खुश हूँ कि जब मैं
अपनी चिंताओं की फुलझड़ियाँ
हवा में छोड़ता हुआ
हर मुश्किल को धुएँ की तरह पी जाऊँगा
धरती के नाम के एक-एक अक्षर को
इस तरह चमकाऊँगा
कि युद्ध को भूल कर दुनिया
रोशनी के उत्सुव में बदल जाएगी
मैं आकाश-गंगा को
जमीन पर बहाऊँगा
बादलों के बिस्त्र पर
पृथ्वी के पहाड़ों-नदियों
फूलों और फलों के सपने देखूंगा
चांद से सूरज की ओर उड़ता हुआ
कोई दोस्तू मिलेगा मुझे
हमारे सिर पृथ्वीत की ओर
और पैर आसमान में होंगे
हमारे मिलते ही बेचारे
रोटी की तरह कुछ तारे टूट जाएँगे
रंगीन हवाएँ चलेंगी
हवाओं में उड़ते कपास के रेशे
और कोयले के कण होंगे
एक-दूसरे को कविताएँ सुनाते हुए
हमारी पोशाक की बत्तियाँ
अचानक जल उठेंगी
और हम हवा में तैरने लगेंगे
बतासों की तरह बिखरे हुए तारों के बीच।