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मैं फिर आऊंगा / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
गतिहीन समय ने
मुझे इस तरह फेंक दिया है
अपने से दूर
जिस तरह फेंक नहीं पाती हैं
चट्टान लहरों को
मैं समय तक आया था यों
कि उसे भी आगे बढाऊँ
मगर उसने
मुझे पीछे फेंक दिया है
मैं चला था जहाँ से
अलबत्ता वहां तक तो
नहीं ढकेल पाया है वह मुझे
और कुछ न कुछ मेरा
समय को भले नहीं
सरका पाया है आगे
ख़ुद कुछ आगे चला गया है उससे
लाँघकर उसे छिटक गये हैं
मेरे शब्द
मगर मैं उसे अब
समूचा लाँघकर
आगे बढ़ना चाहता हूँ
अभी नहीं हो रहा है उतना
इतना करना है मुझे
और इसके लिए
मैं फिर आऊँगा