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मैं भटक गया हूँ / ओसिप मंदेलश्ताम

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मैं भटक गया हूँ आकाश में - क्‍या करूँ ?
वही बताए जिसे प्राप्‍त है उसका स्नेह
ओ दाँतें की खेल-तश्‍तरियों
आसान नहीं था खनकना तुम्‍हारे लिए ।

ज़िन्दगी से मुझे अलग किया नहीं जा सकता,
उसे स्‍वप्‍न आते हैं मारने और दोबारा प्‍यार करने के
कि आँख, नाक और आँखों के कोहरे से
फ्लोरेंस का अवसाद टकराता रहे ।

नहीं, मेरी खोपड़ी को न पहनाओ
इतना कँटीला, इतना स्‍नेहभरा यह जयमाल,
इससे अच्‍छा होगा फोड़ डालो मेरा हृदय
नीली आवाज़ के टुकड़ों पर !

अपना काम पूरा कर जब मरने लगूँ
मैं - ज़िन्दा लोगों का ज़िन्दगी भर का दोस्‍त
और खुले, और ऊँचे, मेरी छाती में
आकाश के गूँज उठें निर्बाध स्‍वर ।

मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह