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मैथिली मुकरियाँ-1 / रूपम झा

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जे सौंसे घर वार चलाबय
दुनियादारी खूब सिखावे
जकरा सँ नहि कियो आघाह
की सखि माता
नहि सखि पाय।
.
खन आधा खन पूरा आबय
नेना सभ क मन मे भावय
सौंदर्यक जे अछि प्रतिमान
की साखि बादर
नहि सखि चान।
.
दूर हवा मे ओ लहरावय
कटय पॉखि तब हाथ न आवय
भावय सभ क जेकरे रंग
कि सखि चिड़ै
नहि पतंग।
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सूख्खा सुख्खी भोजन पावय
दोबर तेबर पुनः घुरावय
भरै अछि जे सभहक पेट
कि सखि कोठी
नहि सखि खेत।
.
हरियर वस्त्र पहिरने आबय
लाल रंग मे पुनः रंगाबय
लत लागय तब करै हरान
कि सखि मेंहदी
नहि सखि पान।
.
जखन गगन पर घन घुरिआवय
तखन तखन ओ नाच देखावय
लागय सुंदर पोरे पोर
कि सखि सुंदरि
नहि सखि मोर।
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जकर मोल नहि कियो चुकाबय
जग मे सुंदर काज कहाबय
जे अपनाबय पावय मेवा
कि सखि पूजा
नहि सखि सेवा।
.
कोनो क्षण जे नहि झुकि पावय
जकरा लागय पानि पियाबय
बूढ़क मुदा सचैका साथी
किसखि बेटा
नहि सखि लाठी।