मोटर अड्डे पर गुलमुहम्मद / कुमार कृष्ण
काँगड़ी की आग पर उँगलियाँ मजबूत करता
बहुत बार मिला गुलमुहम्मद उसी जगह
उतरते हैं जहाँ यायावर
जहाँ से आरम्भ होती है यात्रा।
सलाम करते हुए कहता है गुलमुहम्मद-
मैं कुछ लोगों को अच्छी तरह जानता हूँ साहब !
उनकी जेब में हैं अनगिनत सपने
सफर के साथ लम्बी होगी उनकी कतार
हिलेंगे बारी-बारी उँगलियों पर सपने
थोड़ी देर बाद
खीसे में पूरी तरह डूबी हुई उँगलियों में
न सपने होंगे न सपनों की गन्ध
उँगलियों में होगी बस नन्हीं-सी पोटली
और पोटली की मजबूत गाँठ।
तुम किस तरह जानते हो गुलमुहम्मद!
मुझे मालूम है साहब!
अच्छी तरह मालूम है
मैं भी साल में एक बार जाता हूँ गाँव
पहले मैं जानता था-
मेरा फेरन<ref>गर्म कपड़े का कुर्तानुमा वस्त्र</ref> है सपनों का गोदाम
जूतों के गोदाम में सोते हुए लगातार
गुलमुहम्मद के पास आते हैं बस जूतों के सपने।
बहुत ही खूबसूरत होता है जूते का सपना
क्या आपने कभी देखी है साहब?
नहीं गुलमुहम्मद नहीं देखा,
अजी साहब जूते के सपने में नहीं नज़र आते जूते
उसमें नज़र आते हैं-
गाय- बैल, भेड़-बकरी, खेत-किसान-खलिहान
मैं हर रोज सुनता हूँ
बैलों के गले की घण्टियों का स्वर।
कभी-कभी जूते के सपने में नज़र आता है-
एक भयानक कुत्ता
वह जूते को चबाता है रोटी की तरह
तब मैं डरने लगता हूँ साहब!
टूट जाती है मेरी नींद
चला आता हूँ उठकर गोदाम की खिड़की के पास
बहुत कम सोने लगे हैं लोग
सड़क पर जारी है रात की बस-यात्रा।