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मौसम (पांच क्षणिकाएं) / रंजना भाटिया
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१
गुलमोहर के फूल
जैसे हाथ पर कोई
अंगार है जलता ...
२
जेठिया आग से
झुलसे है बहार
अमलतास से मिटे
कुछ गर्मी की आस
३
झूमे पत्ते
डाली डाली
झूम के बरसा मेघ
सावन की ऋतु आ ली
४
कैसे मदमस्त
हो के छेड़े मल्हार
पत्तियों पर बुंदिया की
पड़े है जब मार.....
५
उमड़ी घटा
दीवाने बदरा
शोर मचाये
नाचा मन मोर भी
पर तुम न आये ..
बिखरी जुल्फों को
अब कौन सुलझाए ...