भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मौसा जी / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
मत दौ कन्नी मौसा जी;
आठ चवन्नी मौसा जी।
धूपोॅ सें जादा चमचम
चमकै पन्नी मौसा जी।
हौ जुग छू मन्तर भेलौ,
कहाँ अधन्नी मौसा जी!
कोन बथानी में होय छै
गाय बकन्नी मौसा जी?
आठ कमैलौ; मौसी केॅ दौ-
चार चौवन्नी, मौसा जी।