भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

म्हारो सुपनो / भंवर भादाणी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

च्यारूंमेर
धंवर री धुंध
किटकिटाता दांत
थरथरता डील
कदै कदास
रमतिया करतो-सो
तावड़ो
म्हारो सुपनो-सो।