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म्हैं दपट’र राखी है / नीरज दइया
Kavita Kosh से
थारी ओळूं
हाल तांई भूली कोनी
म्हारै तांई पूगण रो मारग
थूं म्हनै नीं बिसराय सकै।
म्हैं दपट’र राखी है
म्हारै सुपनां भेळै
थारी उडीक।
सींवां सदीव बदळी
अर कीं बदळ्या आपां
पण इण बदळाव मांय
नीं बदळी म्हारै खातर
थारी छिब
जे बदळ जांवती
तो पांतर जांवती ओळूं
म्हारै तांई पूगण रो मारग।