यही जीवन / कुलदीप कुमार
यूँ तो यह जीना भी कोई जीना है
फिर भी
अगर मृत्यु के बाद
दुबारा यहाँ आ गया
तो जीना चाहूँगा एक बार
फिर
यही जीवन
शायद तब पढ़ सकें वे सब किताबें
जो मैंने कई घटिया-सी नौकरियाँ करते हुए
पैसे बचा-बचाकर ख़रीदी थीं
बल्कि कुछ के लिए तो उधार भी लिया था
शायद लिख पाऊँ वे सभी कविताएँ
जो स्वप्न में तो दिखाई दे जाती हैं
पर आँख खुलते ही
फुर्र हो जाती हैं
दुबारा यही जीवन मिले अगर
तो शायद उन सभी दोस्तों से मिल सकूँ
जिनके अब नाम भी याद नहीं
लेकिन
जिनकी शक्लें अब भी आँखों के आगे आ जाती हैं
अनानास
और हाँ,
शायद उन सभी शहरों में भी जा सकूँ
जहाँ बढ़िया खुरचन मिलती है
और
जिनसे प्रेम करने के बावजूद कभी कह नहीं पाया
उनसे कहने की हिम्मत जुटा सकूँ
इन सबसे भी ज़्यादा ज़रूरी एक और काम है
जो मैं करना चाहूँगा
बड़ा भाई जो बाँह छुड़ाकर चला गया हमेशा के लिए
उससे कहूँगा
मुझे वहाँ याद रखे
जैसे मैं उसे यहाँ रखता हूँ