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यही तो चाहते हैं वे / प्रेमनन्दन
Kavita Kosh से
लड़ना था हमें
भय, भूख, और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ !
हम हो रहे थे एकजुट
आम आदमी के पक्ष में
पर उन लोगों को
नहीं था मंज़ूर यह !
उन्होंने फेंके
कुछ ऐंठे हुए शब्द
हमारे आसपास
और लड़ने लगे हम
आपस मे ही !
वे मुस्कुरा रहें हैं दूर खड़े होकर
और हम लड़ रहें हैं लगातार
एक दूसरे से
बिना यह समझे
कि यही तो चाहते हैं वे !