भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यह ऊब है / ब्रज श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
यह ऊब है...
जिसने बदलाव ज़रूरी किए सबके लिए
यह प्रकृति है
जिसने किसी की ऊब का रखा ध्यान
और बदलते रहे मौसम
जगहें बदलती रहीं भूकम्प की
आसमान के मंच पर
कभी इन्द्रधनुष और कभी धूमकेतु
करते रहे अभिनय