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यह सोचना ठीक नहीं / ब्रज श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
यह सोचना ठीक नहीं कि
हर काम समय ही करेगा
हमारे लिए
हमारे ख़िलाफ़ ही होता है समय
जो हमें घोल रहा है हर दिन थोड़ा और
हम ही आगे बढ़ रहे होते हैं
दिन के सीने पर पाँव रखकर
हवा के हज़ारों-हज़ारों पैदलों को मारकर
आगे बढ़ते हैं हम
जीवन की शतरंज की बिसात पर
हमारा मुस्कुराना कई बार
औरों के बुरे इरादों को कुचलने
के काम आता है ।
हमारा गुनगुनाने लगना
कई निराशाओं को वापिस लौटाता है
हमारा प्रतिरोध करना ही
हमारे होने के हस्ताक्षर
छोड़ता है कई बार
यह सोचना ठीक नहीं
विरोध में उठना
जीने की कला में शामिल नहीं ।