भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यात्रा / आरती 'लोकेश'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निकला है महति सफर में, जरूरी साधन उठाता चल,
अकेले चलना है कठिन, संग साथ में हाथ बढ़ाता चल।

राह में तम है घना तो, आस के दीप जलाने होंगे,
मार्ग में पथ सूझे न तो, एक-एक कदम बढ़ाता चल।

सूर्योदय की लालिमा से, जीवन सुर्ख बनाने होंगे,
पर्वतों की शृंखला सा, इरादा अटल बनाता चल।

खिले फूल पर तितली झूमे, मन को तेरे हर्षाने को,
अधखिली पंखुड़ी मिले तो, श्रमपूर्व चटकाता चल।

कोयल कूके अम्बवा डोले, प्रिय संगीत रिझाने को,
कागा बोले कर्कशता घोले, मधुर वाणी सुनाता चल।

घने पेड़ की छाया में तू, थकन अपनी बिसरा लेगा,
सूखी घास अगर दिखे तो, स्नेह वारि बरसाता चल।

हँसते-गाते राही मिलें तो, लहराता झूम बढ़ पाएगा,
दुखी हीन दलित बंधु को, अपने गले लगाता चल।