भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यादों का शॉल / प्रशान्त 'बेबार'
Kavita Kosh से
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।
ये कैसा थान है वक़्त का
लम्हा लम्हा खोलूँ तो
उधड़े उधड़े से रेशे निकल रहे हैं
हर-पल "पल" फिसल रहे हैं
इस थान से जो काटे थे लिबास
अब बीत चुके हैं
माज़ी की पोशाकें फबती नहीं
यादों की क़मीज़ जँचती नहीं
इस वक़्त के थान में ढूँढो कोई
बिना किरच का हिस्सा,
और एक बड़ा सा दिन काट दो
इस दफ़ा शॉल बनानी है याद की
तुम्हें दिन भर ओढ़ूँगा भी
और बिछाऊँगा भी।