युगे-युगे उज्जयिनी / हरीश प्रधान
युगे-युगे उज्जयिनी, नगरी महाकाल, अविनासी
ध्वजा धर्म की लिये, यहाँ पर, एक हैं भारतवासी
हरिद्वार, नासिक, प्रयाग 'औ' हृदयस्थल उज्जयिनी
चार नगर में, कुम्भ पर्व की, बहती है निर्झरनी
भोज, भर्तृहरि, विक्रम की आराध्यदाय उज्जयिनी
क्षिप्रा के तट, प्रतिकल्पा है, मोक्षदाय उज्जयिनी
कल-कल करती, शिप्रा के तट पर, आ पुण्य कमाते
वेद, पुराण और गीता का, ज्ञान यहाँ पर पाते
कोटि-कोटि जन, नगर ग्राम से आते, यहाँ नहाते
उज्जयिनी के कुम्भ पर्व पर, अपना अर्ध्य चढ़ाते
महाकाल का भस्म आराधन, हरसिद्धि का वन्दन
छप्पन भैरव तीर्थ और चौसठ योगिनी का नर्तन
जाग मच्छंदर, गौरख आया, चक्रतीर्थ का गर्जन
नाथ पंथ की गौरव भूमि, उज्जयिनी का वन्दन
अद्भुत संगम ऋषिमुनियों का, यहाँ हुआ अलबेला
अंतराल बारह वर्षों से, लगा कुम्भ का मेला
असुरों से धरती की रक्षा, देव प्रयास यह मेला
सिंहस्थ है, उज्जयिनी में यही कुम्भ का मेला
केरल से कश्मीर, कच्छ से कलकत्ते के वासी
शैव, वैष्णव, निर्वाणी, बैरागी और उदासी
ध्वजा धर्म की लिये, यहाँ पर एक हैं भारतवासी
युगे-युगे उज्जयिनी नगरी महाकाल अविनाशी
जीवन की अभिलाषा, महती जिजीविषा कीआशा
सागर का मन्थन करती है, मानव अमिय पिपासा
सागर तल से, देवासुर ने, मिल अमरत्व तलाशा
अमृत घट से, अमृत का कण, छलका यहाँ ज़रा-सा
अमृत कण की वर्षा का, यह महा महोत्सव मेला
पुण्य सलिला क्षिप्रा में, अवगाहन का यह मेला
हर हर गंगे, जय-जय क्षिप्रा, जन रव का यह मेला
जन जन में सद्भावों के, आह्वाहन का यह मेला
दत्त अखाड़ा, क्षिप्रा के इस पार, क्षेत्र है भारी
पीर, पुरी होते महंत, इस आसन के अधिकारी
त्यागी और तपस्वी, नागाओं का जमघट भारी
भंडारा हो रहा, प्रसाद पा रहे, लाखों नर नारी
धर्मक्षेत्र यह सारा उपवन, कोस-कोस तक फैला
बारह वर्षों बाद भरा फिर, यहीं कुम्भ का मेला
उपवन-उपवन, आश्रम-आश्रम, रंग यहाँ अलबेला
संत समागम, तप आराधन ज्ञान रंग का मेला
मण्डलेश्वर है कोई, कोई महा-महा मण्डलेश्वर
पीठ-पीठ के एकत्रित हैं, सारे पीठाधीश्वर
धर्म-पीठ का सम्मेलन, कर रहे प्रमुख, प्रन्यासी
ध्वजा, धर्म की लिये, यहाँ पर एक हैं भारतवासी
युगे-युगे उज्जयिनी नगरी महाकाल अविनाशी
कनखल, गुरु का ज्ञान, शब्द, कीर्तन, गुरबाणी
टेक रहे हैं मत्था, उज्जयिनी को, सारे ज्ञानी
योगी, हठी, तपस्वी के डेरे आश्रम कल्याणी
दर्शन और धरम को आते, देश-देश के ज्ञानी
स्नान, ध्यान औ' योग तपस्या प्रात: काल तय्यारी
धर्म ध्यान के अद्भुत दर्शन कितने विस्मयकारी
हिमालय औ' हरिद्वार के संत महंत औंकारी
प्रवचन करते, धन्य-धन्य, तन्मय होते संसारी
तरह तरह के सम्प्रदाय के संत महंत सन्यासी
प्रवचनकर्ता, तेरा पंथी, वैष्णव और उदासी
ध्वजा धर्म की लिये, यहाँ पर एक हैं भारतवासी
युगे युगे उज्जयिनी, नगरी महाकाल, अविनाशी
उज्जयिनी को, तीन ओर से, क्षिप्रा ने आ घेरा
क्षिप्रा के दोनों तट पर, साधु संतों का डेरा
मंगलनाथ, जहाँ धरती पर, मंगल का है फेरा
वटवृक्षों से घिरा हुआ है, उपवन यहाँ घनेरा
सांदीपनि का आश्रम, गुरुकुल की है महिमा भारी
पढ़ने स्वयम् कृष्ण भी आये, गरिमा इसकीन्यारी
आदि देव महादेव, महाकालेश्वर करे सवारी
सात नगरियों में, भारत की, अवंतिका है न्यारी
आदिकाल से संस्कृतियों कीधारा जहाँ बही हैं
भोज, भर्तृहरि, कालिदास ने कविता यहाँ कही है
आलोकित हो जहाँ प्रकृति ने रूप धरे चौरासी
सौ-सौ बार नमन करते हैं, कविगण नगरनिवासी
युगे युगे उज्जयिनी, नगरी महाकाल, अविनाशी
ध्वजा धर्म की लिये, यहाँ पर एक हैं भारतवासी