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युवा पीढ़ी का तराना / नज़ीर बनारसी
Kavita Kosh से
एक इक टुकड़े की ख़ातिर देंगे सौ-सौ जान हम
पर तुझे टुकड़े न होने देंगे हिन्दुस्तान हम
देश के कड़ियल जवाँ हम पूर्वजों की शान हम
कल के वह बलवान थे और आज के बलवान हम
शिवा हम प्रताप हम रंजीत हम चौहान हम
अब वतन के सूरमा हम हैं, वतन की शान हम
शेर दिल टीपू हमारी दास्ताँ, उनवान हम
लक्ष्मी बाई का बल, जीनत महल की आन हम
कल थी राजाओं की शक्ति आज की शक्ति अवाम
तब के हिन्दुस्तान वो थे अबके हिन्दुस्तान हम
आदमी सब आदमी हे ख़त्म कीजे ऊँच-नीच
कैसी यह तक़सीम जब इन्सान तुम इन्सान हम
चार दिन की ज़िन्दगी है काट ले हँस-बोल के
किसको रहना है यहाँ मेहमान तुम मेहमान हम
मौसमी नद्दी नही ंहम हैं महासागर ’नजीर’
हो गये मिल के पच्चासी करोड़ इन्सान हम
शब्दार्थ
<references/>