भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये कौन है / सुनीता शानू
Kavita Kosh से
ये कौन है जो चुपके से मुस्कुराया है
तेरा चेहरा है या चाँद निकल आया है
फैल रही है खुशबू फ़िजाओं मे तेरी-
आज हवाओं ने भी तेरा पता बताया है
लगे हैं फूलों के मेले शाखों पर ऎसे
कि जैसे परिन्दा नया कोई आया है
मुझसे मिलकर वो खुश तो बहुत होंगे
मै भी हूँ बेचैन जबसे उनका खत आया है
काग भी बोल रहा था मुंडेर पर कब से
घर पे तुम्हारे ये मेहमान कौन आया है
दिल मचल रहा है जाने किस बात से
कि तुमने हमें कैसा दीवाना बनाया है।