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रंगों की शोभायात्रा में / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
अमलतास और पलाश ने रचा है ब्रह्मपुत्र के किनारे
रंगों का अनोखा जगत
जहाँ आकाश लाल और पीले रंग में
बँटा हुआ नज़र आता है
जहाँ तीखी धूप में लाल रंग की चुनर
लहराती हुई नज़र आती है
कंक्रीट के जगत की कड़वाहट पर हावी हो गया है
अमलतास का रंग और जेठ के महीने में
शहर के एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक
फैलता जाता है जहाँ पलाश की पिचकारी से
बिखरता दिखाई देता है पीला रंग
चाँदी की तरह ब्रह्मपुत्र की जलधारा
नीली रंग की पहाड़ियाँ नारी की तरह
अँगड़ाई लेती हुई नज़र आती है और पल-भर के लिए
भीड़ का सारा शोर ग़ुम हो जाता है
रंगों की शोभायात्रा में बहता चला जाता हूँ ।