भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रसोई / राधावल्लभ त्रिपाठी
Kavita Kosh से
प्याज काटते समय आँखों से निकले खारे-खारे आँसू
उसके साथ अचानक ओठों फूट पड़ी मीठी हँसी
ये दोनों कड़ाही में मिलकर
घी में भुनते हैं जब
उठता है कसैला मीठा धुँआ रसोई में।
आवाहन करता है देवताओं का।
तब हल्दी का उलझा रूप रचा
धनिए की सुगंध मेंबसी
उतरती हैं अन्नपूर्णा साक्षात
रसोई में
अन्न के देव को करती साकार।