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राकेश शर्मा / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

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बच्चों! अन्तरिक्ष में हूँ' मैं,
क्या बतलाऊँ कैसा हूँ मैं?
लेता हूँ मैं भोजन डटकर,
सोटा हूँ मैं निद्रा भरकर।
नित्थ हवा में तैरा करता,
स्वप्न सुहाने देखा करता।
कितना सुन्दर अपना देश,
कैसा रंग-बिरंगा वेष।
बिछी हुई इस हरियाली में,
हीरों की सुन्दर प्याली में।
छींटें रंग-बिरंगे दिखते,
खिले फूल बहुरंगे दिखते।
सागर, नदियाँ और हिमालय,
जय ऐसे भारत की जय-जय।
मैं हूँ इसी देश का बेटा,
सोचा करता लेटा-लेटा।
योगासन करता रहता हूँ,
ऋषियों-सा अनिभाव करता हूँ।
तुमने दी है मुझे बधाई,
भेजूँगा मैं तुम्हें मिठाई।