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राख़ / एरिष फ़्रीड / प्रतिभा उपाध्याय
Kavita Kosh से
मैं राख हूँ
अपनी ज्वालाओं की
जिनका ईंधन बना मैं
जिन्होंने बनाया मेरा कीमा
जब मैं कुल्हाड़ी था
पकड़े हुए था उसे
अपने हाथों से
जिसने मुझे जला दिया
जब तक खोजी
मैंने ठण्डक
अपनी राख में !
मूल जर्मन से अनुवाद : प्रतिभा उपाध्याय