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राजस्थानी / कन्हैया लाल सेठिया
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इयां हुयो के साव खूटगी
क्यूं थांरी पुनवानी !
छोड़्यो भेखा छोड़ दी भासा
भला बण्या बिणजारा !
लिया अमोलक रतनां बदळै
थे लोटां रा भारा !
किंयां कवां म्हे स्याणा थांनै
टाबर बुध स्याच्याणी !
गुजराती, पंजाबी, सिन्धी
आं में भी बेपारी,
पण सगळां में रळ मिल राखी
निज पिछाण अै न्यारी,
थांनै आवै लाज बतातां
निज नै राजस्थानी ।
आज जको भारत है बीं रा
थे मोटा निरमाता,
पण निज री ओकात भूलग्या
सिरजणहार विधाता,
कुण गिनारसी थे ही थां री
खिमता नहीं पिछाणी।