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राज़ न पूंछो / धीरेन्द्र अस्थाना
Kavita Kosh से
हँस रहा हूँ मै आप की महफिल में,
आज मेरे हँसने का राज़ न पूंछो...!
जिन्दगी की ग़जल गुनगुनाने चला ,
निकली जो हलक से आवाज़ न पूंछो...!
कोशिश थी एक हशीं मुशायरे की,
गमे शायरी का ये अंदाज़ न पूंछो...!
बजता ही रहा जिन्दगी की धुन पर ,
रौनके महफिल का साज़ न पूंछो....!
आ गयी जो ये बात जुबाँ पर आज ,
मकशद -ए- बयाँ आज न पूंछो...!
हँस रहा हूँ मै आप की महफिल में,
आज मेरे हँसने का राज़ न पूंछो...!