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राजा और प्रजा / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
प्रजा भेड़ है
जिधर चाहे हाँक दे राजा
प्रजा दुख सहती है
भूखी रहती है
घाम-बतास में परिश्रम करती है
जब मज़दूरी मांगने आती है प्रजा
तो उसकी हथेली पर नफ़रत से थूक देता है राजा
प्रजा बिना गुस्से के लौट आती है
प्रजा सूइलार गाय है
जो भी चाहे थनों से निचोड़ ले दूध
प्रजा अत्याचारी राजा में
गुण खोजने की अभ्यस्त है
प्रजा सत्ता का खेल देखती है
प्रजा ज्यादतियाँ सहन करती है
अपने स्वभाव से गूंगी हो गई है प्रजा
तानाशाह हो गया है राजा
वह प्रजा का जिस्म कुर्क करना चाहता है
प्रजा ख़ुशी-ख़ुशी कुर्क हो जाएगी क्या?