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राजा की बकरियाँ / रमेश कौशिक
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बाबा ने
बिरवा गुलाब का
घर के आँगन में रोपा था
और सोचा था--
एक दिन पूर्णता पर पहुँचेगा
उल्लास और आनन्द के प्रतीक
लाल-लाल फूलों से दमकेगा
मादक सुगन्ध से पड़ौस भी गमकेगा
किन्तु फूल खिलने से पहले ही
पत्ते और कलियाँ
खा जाती हैं
राजा की बकरियाँ
शेष रह जाते हैं
केवल शूल
जो हाथों में
पाँवो में चुभते हैं
घर भर को दुखते हैं