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रात भर आते रहे सपने / अज्ञेय

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    रात-भर आते रहे सपने

     रात-भर आते रहे सपने :
     एक भी अच्छा नहीं था।
     किन्तु वास्तव जगत में मुझ को अनेकों बार
     सुख मिलता रहा है।

     रात भी जब जगा
     शय्या सुखद ही थी।
     यही क्या तब मानना होगा
     कि सपने बुरे हैं सो सत्य हैं
     और सुख की वास्तविकता झूठ है?

तोक्यो, 14 नवम्बर, 1957