भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रात भर आते रहे सपने / अज्ञेय
Kavita Kosh से
रात-भर आते रहे सपने
रात-भर आते रहे सपने :
एक भी अच्छा नहीं था।
किन्तु वास्तव जगत में मुझ को अनेकों बार
सुख मिलता रहा है।
रात भी जब जगा
शय्या सुखद ही थी।
यही क्या तब मानना होगा
कि सपने बुरे हैं सो सत्य हैं
और सुख की वास्तविकता झूठ है?
तोक्यो, 14 नवम्बर, 1957