रामभक्त कवि तुलसी / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
भक्ति भाव से धराधाम को धन्य बनाया तुलसी ने।
सरस पदों में रामनाम-रस घोल पिलाया तुलसी ने॥
प्रकट हुआ वह पावन प्रतिभा का वरदान विशेष लिए,
भूले-भटके मानव के हित एक अमर सन्देश लिए।
अवसर पाकर वैरागी मन विषयों से मुख मोड़ चला,
शरण राम की पा जाने को भव के बन्धन तोड़ चला।
काम असम्भव को भी सम्भव कर दिखलाया तुलसी ने।
सरस पदों में रामनाम-रस घोल पिलाया तुलसी ने॥
भक्ति-भाव से धराधाम को धन्य बनाया तुलसी ने।
सरस पदों में रामनाम-रस घोल पिलाया तुलसी ने॥
रोध-विरोधों में भी अपने लक्ष्य-मार्ग से हटा नहीं,
जन-कल्याण कामना का संकल्प कदाचित घटा नहीं
किया साध्य के लिए समर्पित जीवन की सब चाहों को,
विमुख राम से जो करती हों त्याग दिया उन राहों को।
जीवन सफल बनाने का शुचि पाठ पढ़ाया तुलसी ने
सरस पदों में रामनाम-रस घोल पिलाया तुलसी ने॥
भक्ति-भाव से धराधाम को धन्य बनाया तुलसी ने।
सरस पदों में रामनाम-रस घोल पिलाया तुलसी ने॥
गुरु की दया-दृष्टि से दिव्यालोक सहज ही प्राप्त हुआ,
सतत् साधना से विवेक बल मानस में परिव्याप्त हुआ।
चिन्तन ओर मनन के साँचे में अपने को ढाल लिया,
आगम-निगम पुराा सभी का मथ कर सार निकाल लिया।
भाव भरी कृतियों का भू पर स्रोत बहाया तुलसी ने
सरस पदों में रामनाम-रस घोल पिलाया तुलसी ने॥
भक्ति-भाव से धराधाम को धन्य बनाया तुलसी ने।
सरस पदों में रामनाम-रस घोल पिलाया तुलसी ने॥
अमृत मेघ बन बरस गया कविता के उजड़े उपवन में,
चेतनता भर गया नई भाषा के जर्जर जीवन में।
सियाराममय जान जगत् को नमन और सत्कार किया,
रामचरितमानस की रचना कर जग का उद्धार किया।
काव्य-कला से भव्य भारती-भवन सजाया तुलसी ने।
सरस पदों में रामनाम-रस घोल पिलाया तुलसी ने॥
भक्ति-भाव से धराधाम को धन्य बनाया तुलसी ने।
सरस पदों में रामनाम-रस घोल पिलाया तुलसी ने॥
तुलसी की रामायण रत्नों से पूरित मंजूषा है,
मोह जनित अज्ञान तिमिर में उदित ज्ञान की ऊषा है।
जीवन दर्शन, सरल संहिता है आचार-विचारों की,
हर सशक्त रचना हरने वाली है सकल-विकारों की।
मन-मन्दिर में राम-भक्ति का दीप जलाया तुलसी ने।
सरस पदों में रामनाम-रस घोल पिलाया तुलसी ने॥
भक्ति-भाव से धराधाम को धन्य बनाया तुलसी ने।
सरस पदों में रामनाम-रस घोल पिलाया तुलसी ने॥
राम-भक्ति का भूखा था पर अघा गया श्रीमन्तों को,
रँगा भक्ति के रँग में जग के ज्ञानी सन्त-महन्तों को।
नभ में जब तक रवि-किरणों का तेज नहीं होगा फीका,
अमिट रहेगा नामा विश्व में राम-भक्त कवि तुलसी का।
सुयश जगत् में निज करनी से धु्रव-पद पाया तुलसी ने।
सरस पदों में रामनाम-रस घोल पिलाया तुलसी ने॥
भक्ति-भाव से धराधाम को धन्य बनाया तुलसी ने।
सरस पदों में रामनाम-रस घोल पिलाया तुलसी ने॥