भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रामू का कबूतर / बालस्वरूप राही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रामू जी ने एक कबूतर बड़े शौक से पाला,
थोड़ा-थोड़ा गोरा था वह, थोड़ा- थोड़ा काला।

गरदन फुला, पंख फैला कर बड़े तमाशे करता,
पर पूसी को देख आँख मिच जाती, उस से डरता।

पाठ पढ़ाया उस को- “बोला, अच्छा हूँ, अच्छा हूँ।”
आँख नचा कर बोल उठा वह- “गुटरूँ गूँ, गुटरूँ गूँ।”

जब पढ़ने की बारी आती झटपट वह सोता था,
कैसे पाठ याद करता वह क्या रट्टू तोता था !