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राय / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
Kavita Kosh से
नहि पसारी घृणा
कतोक लोक
घृणाक आगिमे झरकि जाइत अछि।
नहि काटू गाछ
कतोक लोक
फल खयबासँ वंचित भऽ जाइत अछि।
अनेरे खर्च नहि करू पानि
कतोक लोक
बुन्न भरिक लेल छटपटाइते रहि जाइत अछि।
पसारबके होअय
तँ पसारू प्रेमकें
काटबाके होअय
तँ लोभकें काटू
बाँटबाके होअय
तँ बाँटू अपन अनुभव।