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राहत की साँसें / रश्मि प्रभा

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वक्त जब हद से गुज़र जाए
तब कितनी बातें घूरती रहती हैं आजीजी से
कह लेना था न हमें !
किस उधेड़बुन में रहे ?
वो भी किसके आगे ?
जो खुद से पहले तुम्हें रखता है !
प्यार में क्या इगो !
क्या संकोच !
क्या शब्दों की कमी ...
पास बैठ जाओ बिना कुछ कहे
तो भी सारी बात हो जाती है
दर्द की,
बेचैनी की बारीकियां
दिखाई नहीं जातीं
दिख जाती हैं ...
पर बैठना था ।
कई बार सामने वाला भी एक बन्द
सीलन भरे कमरे की स्थिति में
जीने की वजहें ढूंढता है,
तुम्हारी ख़ामोशी से वह भी बिखर सकता है ...
बांध मिलकर बना लेने से
बहुत सारी गलतफहमियां दूर हो जाती हैं
और बेचैन मन,
कुछ राहत की सांसें ले पाता है ।