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रेती में नाव गड़ी / कुमार रवींद्र
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					रेती में नाव गड़ी
बातें हैं पिछली यात्राओं की 
                            बड़ी-बड़ी 
 
मूँगे के टापू पर 
परियों के पंख मिले 
हिलती चट्टानों पर 
पीले जादुई किले 
 
मन्दिर में देव मिले 
       हाथों में कील जड़ी 
 
दिन नीली आँखों के 
अंधी दीवारों के 
बढती जंजीरों के 
काले व्यापारों के 
 
सूरज के चेहरे पर 
      मोती की छाँव पड़ी 
 
मीलों तक 
पथरीली आवाजें 
सपनों की 
डरे हुए हाथों से 
हत्याएँ अपनों की 
 
मुट्ठी में कसे-कसे 
          टूट गयी काँच-लड़ी
	
	