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रेत का समंदर / राजेन्द्र जोशी
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रेत का समन्दर
दूर-दूर तक फैला
चलते राही को
कुछ कहता है
मुझसे बतिया
मेरी सुन
मेरी पीड़ा को समझ
मेरी देह की आवाज
जो बोलेगी
कई रास्ते खोलेगी
यही मिलेगी मृग नयनी
मुझमें है सोना
इसे तू मत खोना
इसकी रक्षा करना
फिर सबको साथ लेना