भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रेफ़्रेनडम / हबीब जालिब
Kavita Kosh से
शहर में हू का आलम था
जिन था या रेफ़्रेनडम था
क़ैद थे दीवारों में लोग
बाहर शोर बहुत कम था
कुछ बा-रीश से चेहरे थे
और ईमान का मातम था
मर्हूमीन शरीक हुए
सच्चाई का चहलम था
दिन उन्नीस दिसम्बर का
बे-मअ'नी बे-हँगम था
या वादा था हाकिम का
या अख़बारी कॉलम था